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तकल्लुफ न कीजिये…

आत्मचिंतन
आत्मचिंतन
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काम था कुछ गुजर रहे थे यहाँ से
देखा घर आपका महक उठी सांसें,
यूँ ही आपसे मिलने चले आये
जल्दी है बहुत, तकल्लुफ न कीजिये.

जनाब तो दर भुला देते हैं हमारा
मेहमांनवाजी इन्हें नहीं गवारा,
हम ही हैं पल-पल याद करते हैं
मिल के वक़्त इनका बर्बाद करते हैं.

लाये हैं साथ दिल का नजराना
कसम मोहब्बत की ठुकराया न कीजिये,
यूँ ही आपसे मिलने चले आये
जल्दी है बहुत, तकल्लुफ न कीजिये.

परवाह ज़माने की आशिक नहीं करते
जल के शमा से परवाने हैं मरते,
पाक-ख्यालों पे कैसी पर्दादारी
आयें हवाएं खुलें चिलमनें सारी.

बैठे रहेंगे उम्र बीत जायेगी
शरारत से ऐसे मुस्कुराया न कीजिये,
यूँ ही आपसे मिलने चले आये
जल्दी है बहुत, तकल्लुफ न कीजिये.

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